इसे 1204 ईस्वी में अहुका और मन्युका नामक दो स्थानीय व्यापारियों ने बनवाया था। यह वैद्यनाथ (चिकित्सकों के प्रभु) के रूप में भगवान शिव को समर्पित है। शिलालेखों के अनुसार वर्तमान बैजनाथ मंदिर के निर्माण से पूर्व इसी स्थान पर भगवान शिव के पुराने मंदिर का अस्तित्व था। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है।
मकर संक्रांति पर माखन का लेप किए जाने को लेकर अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। मंदिर पुजारी सुरिंद्र आचार्य के अनुसार मंडी रियासत के राजा चंद्र सेन ने भगवान शिव के दर्शन किए और उनके मन में शिवलिंग को मंडी ले जाने की इच्छा पैदा हुई। राजा चंद्रसेन ने इच्छापूर्ति के लिए भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया और इस दौरान राजा अचेत हो गए। अचेत स्थिति में राजा को सपना आया कि ऐसा करने पर उसकी रियासत का विनाश हो जाएगा। इसका प्रायश्चित करने के लिए राजा ने हर वर्ष एक मन घी से लेप करने का वचन दिया। राजा के न रहने पर स्थानीय लोग 2-3 किलोग्राम घी से लेप करने लगे और वर्तमान में यह क्विंटलों तक पहुंच गया है। कांगड़ा से आए सदन शर्मा ने बताया कि मान्यता के अनुसार जालंधर दैत्य से युद्ध के दौरान समस्त देवी देवताओं को जख्म हो गए थे और उन जख्मों पर मरहम लगाने के लिए लेप किया।
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